हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अमरोहा मुहर्रम परंपराओं के पालन को भी संदर्भित करता है। खुशी की बात यह है कि नई पीढ़ी वर्षों पहले अपने बुजुर्गों द्वारा स्थापित की गई पुरानी परंपराओं को कायम रख रही है। इन लंबे समय से चली आ रही परंपराओं में से एक है नौबत नवाज़ी जिसमें दो संगीत वाद्ययंत्र शामिल हैं, नक़रा और छोटी शहनाई।
किसी जमाने में राजाओं के स्वागत में नौबत बजाया जाता था। अमरोहा में मुहर्रम के दौरान, यह नौबत अज़ादारो के आध्यात्मिक राजा, इमाम हुसैन (अ) के स्वागत के लिए बजाया जाता है।अज़ाखानो मे सुबह सवेरे और मातमी जुलूसों के आने से पहले बजाया जाता है। कुछ समय पहले तक केवल पेशेवर नौबत नवाज़ ही बजाते थे, लेकिन धीरे-धीरे इस पेशे से जुड़े लोग दूसरे कामों में लग गए, इसलिए देश के युवाओं ने इस कला में महारत हासिल कर ली। 2010 के बाद से देश के युवा ही इस कला में महारत हासिल कर परंपरा को जारी रखे हुए है। अब आलम ये है कि देश के कई युवा नौबत नवाज़ का किरदार निभा रहे हैं। इन युवाओं में मशहूर सुलेखक हुसैन इमाम के बच्चे भी शामिल हैं।
मुहम्मद अब्बास और हाशिम अब्बास मुहर्रम के दौरान विभिन्न अज़ाखानो में नौबत बजाने की भूमिका निभाते हैं। हाशिम अब्बास नक़रा बजाते हैं जबकि मोहम्मद अब्बास नफ़ीरी पर नौहे की धुन बजाते हैं। नक़रा पर रज़ा इमाम उनके साथ हैं। ये तीनों युवक नौकरीपेशा हैं और उन्होंने शौकिया तौर पर नौबत नवाज सीखा है। मोहम्मद अब्बास को बचपन से ही संगीत का शौक था, जिसे सुनकर सुनने वालों की आंखें बरबस ही नम हो जाती हैं। वह दिल्ली की एक फाइनेंस कंपनी से जुड़े हैं। जबकि हाशिम अब्बास हरियाणा यूनिवर्सिटी से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर जुड़े हुए हैं। मुहर्रम में नौबत परंपरा को जारी रखने के लिए इन युवाओं ने अपने शौक को सवाब पाने का जरिया बना लिया है।